के बारे में ke baare mein : Hindi
लेख का शीर्षक lekh ka sheershak: Balvir Thakur ने आपकी पोस्ट " Shiksha ratant vidya nahi hai niband in hindi " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
Balvir Thakur ने आपकी पोस्ट " Shiksha ratant vidya nahi hai niband in hindi " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
Answer:
शिक्षा मनुष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। शिक्षा मनुष्य को सभ्य और विद्वान बनाती है। शिक्षा ही वह माध्यम है, जो मनुष्य को जीविका के साधन देती है और आत्मनिर्भर बनाती है। शिक्षित व्यक्ति का मान-सम्मान बढ़ाने में शिक्षा का बहुत योगदान है। बाल्यकाल से ही अच्छी शिक्षा के लिए माता-पिता द्वारा प्रयास आरंभ हो जाते हैं। वे अपने बच्चे के भावी सुनहरे भविष्य के लिए उसे उच्च विद्यालयों में दाखिला दिलाने का प्रयास करते हैं।
प्राचीन समय में माता-पिता अपने बच्चों को आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने भेजा करते थे। वे घरों से दूर वनों में बने आश्रमों में विद्या अध्ययन करते थे। इस तरह की विद्या प्राप्ति में गुरू के निकट रहकर वे शांत और दृढ़ मन से शिक्षा अध्ययन करते थे। उस समय शिक्षा का स्तर भी बहुत ही उत्तम हुआ करता था। गुरू के समीप रहने के कारण वे भली-भांति अध्ययन किया करते थे। उनका पूरा ध्यान शिक्षा ग्रहण करने में ही लगता था। आगे चलकर वे विद्वान या वीर हुआ करते थे। अर्जुन, चाणक्य आदि ऐसे ही महान योद्धा और विद्वान थे। परन्तु आज समय बदल रहा है। शिक्षा प्रणाली में भी बदलाव हुआ है।
आज बच्चे अपने घर के समीप बने किसी विख्यात विद्यालय में जाकर शिक्षा ग्रहण करते हैं। उन्हें विद्यालय में जो कुछ पढ़ाया जाता है, उसे घर पर रहकर अध्ययन करने के लिए कहा जाता है। एक शिक्षक बच्चे से यही आशा करते हैं कि उनका विद्यार्थी उनके पढ़ाए पाठ को घर में जाकर अध्ययन करे। परन्तु ऐसा नहीं होता। बच्चे पाठ का घर जाकर अध्ययन नहीं करते हैं। वे घर जाकर अपना अधिकतर समय खेलकूद और कंप्यूटर में व्यतीत कर देते हैं। परीक्षा समय आने पर वह गुरू द्वारा कराए गए पाठों को रटना आरंभ कर देते हैं। स्थिति तब गंभीर हो जाती है जब रटा हुआ, सब उन्हें भूल जाता है। वे उन्हें तोते की तरह रटा हुआ होता है। यदि प्रश्न में जरा-सा फेरबदल होता है, तो उनकी आँखों तले अंधेरा छा जाता है। परिणाम अनुत्तीर्ण या कम अंक प्राप्त होना।
रटना शिक्षा नहीं है, ये तो शिक्षा के नाम पर खानापूर्ति है। जो विद्यार्थी सच में शिक्षा ग्रहण करने का इच्छुक होता है, वह अपनी शिक्षा को गंभीरता से लेता है। अध्यापकों द्वारा पढ़ाए गए पाठ को विद्यालय से आकर घर पर पढ़ता है। यदि एक पाठ को भली-भांति पढ़ा
प्राचीन समय में माता-पिता अपने बच्चों को आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने भेजा करते थे। वे घरों से दूर वनों में बने आश्रमों में विद्या अध्ययन करते थे। इस तरह की विद्या प्राप्ति में गुरू के निकट रहकर वे शांत और दृढ़ मन से शिक्षा अध्ययन करते थे। उस समय शिक्षा का स्तर भी बहुत ही उत्तम हुआ करता था। गुरू के समीप रहने के कारण वे भली-भांति अध्ययन किया करते थे। उनका पूरा ध्यान शिक्षा ग्रहण करने में ही लगता था। आगे चलकर वे विद्वान या वीर हुआ करते थे। अर्जुन, चाणक्य आदि ऐसे ही महान योद्धा और विद्वान थे। परन्तु आज समय बदल रहा है। शिक्षा प्रणाली में भी बदलाव हुआ है।
आज बच्चे अपने घर के समीप बने किसी विख्यात विद्यालय में जाकर शिक्षा ग्रहण करते हैं। उन्हें विद्यालय में जो कुछ पढ़ाया जाता है, उसे घर पर रहकर अध्ययन करने के लिए कहा जाता है। एक शिक्षक बच्चे से यही आशा करते हैं कि उनका विद्यार्थी उनके पढ़ाए पाठ को घर में जाकर अध्ययन करे। परन्तु ऐसा नहीं होता। बच्चे पाठ का घर जाकर अध्ययन नहीं करते हैं। वे घर जाकर अपना अधिकतर समय खेलकूद और कंप्यूटर में व्यतीत कर देते हैं। परीक्षा समय आने पर वह गुरू द्वारा कराए गए पाठों को रटना आरंभ कर देते हैं। स्थिति तब गंभीर हो जाती है जब रटा हुआ, सब उन्हें भूल जाता है। वे उन्हें तोते की तरह रटा हुआ होता है। यदि प्रश्न में जरा-सा फेरबदल होता है, तो उनकी आँखों तले अंधेरा छा जाता है। परिणाम अनुत्तीर्ण या कम अंक प्राप्त होना।
रटना शिक्षा नहीं है, ये तो शिक्षा के नाम पर खानापूर्ति है। जो विद्यार्थी सच में शिक्षा ग्रहण करने का इच्छुक होता है, वह अपनी शिक्षा को गंभीरता से लेता है। अध्यापकों द्वारा पढ़ाए गए पाठ को विद्यालय से आकर घर पर पढ़ता है। यदि एक पाठ को भली-भांति पढ़ा
जाए या उसका अध्ययन किया जाए, तो वह सरलता से याद हो जाता है। गणित विषय के प्रश्नों का बार-बार अभ्यास करने से ही वे हल होते हैं। यही शिक्षा ग्रहण करने का मंत्र है। जो अभ्यास के स्थान पर रटता है, वह जीवन में उपाधियाँ (डिग्रियाँ) तो प्राप्त कर लेते हैं। परन्तु शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते। रटने से उत्तीर्ण तो हो सकते हैं। परन्तु एक योग्य विद्यार्थी नहीं बन सकते हैं। अच्छी तरह से प्राप्त की गई शिक्षा जीवन में बहुत काम आती है। परन्तु जिसने रटना सीखा हो, वह कुछ और नहीं सीख सकता है। यह तो वही कहावत हो जाती है- आगे दौड़, पीछे छोड़। इसलिए सभी यही कहते हैं रटना शिक्षा नहीं है।
उस लेख के बारे में us lekh ke baare mein Balvir Thakur ने आपकी पोस्ट " Shiksha ratant vidya nahi hai niband in hindi " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
Articles containing about Balvir Thakur ने आपकी पोस्ट " Shiksha ratant vidya nahi hai niband in hindi " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:, hopefully can give the best answer. Okay, so my posts.
तुम सिर्फ पढ़ा है tum sirph padha hai Balvir Thakur ने आपकी पोस्ट " Shiksha ratant vidya nahi hai niband in hindi " पर एक टिप्पणी छोड़ी है: और इस लेख के बाद स्थायी शामिल करने के लिए उद्धृत किया जा सकता aur is lekh ke baad sthaayee shaamil karane ke lie uddhrt kiya ja sakata https://axaj.blogspot.com/2016/08/shiksha-ratant-vidya-nahi-hai-niband-in.html यह लेख एक साथी खोज नहीं है, तो yah lekh ek saathee khoj nahin hai, to Hindi शायद नीचे लेख पाल मदद कर सकते हैं shaayad neeche lekh paal madad kar sakate hain.
जवाब देंहटाएंशिक्षा मनुष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। शिक्षा मनुष्य को सभ्य और विद्वान बनाती है। शिक्षा ही वह माध्यम है, जो मनुष्य को जीविका के साधन देती है और आत्मनिर्भर बनाती है। शिक्षित व्यक्ति का मान-सम्मान बढ़ाने में शिक्षा का बहुत योगदान है। बाल्यकाल से ही अच्छी शिक्षा के लिए माता-पिता द्वारा प्रयास आरंभ हो जाते हैं। वे अपने बच्चे के भावी सुनहरे भविष्य के लिए उसे उच्च विद्यालयों में दाखिला दिलाने का प्रयास करते हैं।
प्राचीन समय में माता-पिता अपने बच्चों को आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने भेजा करते थे। वे घरों से दूर वनों में बने आश्रमों में विद्या अध्ययन करते थे। इस तरह की विद्या प्राप्ति में गुरू के निकट रहकर वे शांत और दृढ़ मन से शिक्षा अध्ययन करते थे। उस समय शिक्षा का स्तर भी बहुत ही उत्तम हुआ करता था। गुरू के समीप रहने के कारण वे भली-भांति अध्ययन किया करते थे। उनका पूरा ध्यान शिक्षा ग्रहण करने में ही लगता था। आगे चलकर वे विद्वान या वीर हुआ करते थे। अर्जुन, चाणक्य आदि ऐसे ही महान योद्धा और विद्वान थे। परन्तु आज समय बदल रहा है। शिक्षा प्रणाली में भी बदलाव हुआ है।
आज बच्चे अपने घर के समीप बने किसी विख्यात विद्यालय में जाकर शिक्षा ग्रहण करते हैं। उन्हें विद्यालय में जो कुछ पढ़ाया जाता है, उसे घर पर रहकर अध्ययन करने के लिए कहा जाता है। एक शिक्षक बच्चे से यही आशा करते हैं कि उनका विद्यार्थी उनके पढ़ाए पाठ को घर में जाकर अध्ययन करे। परन्तु ऐसा नहीं होता। बच्चे पाठ का घर जाकर अध्ययन नहीं करते हैं। वे घर जाकर अपना अधिकतर समय खेलकूद और कंप्यूटर में व्यतीत कर देते हैं। परीक्षा समय आने पर वह गुरू द्वारा कराए गए पाठों को रटना आरंभ कर देते हैं। स्थिति तब गंभीर हो जाती है जब रटा हुआ, सब उन्हें भूल जाता है। वे उन्हें तोते की तरह रटा हुआ होता है। यदि प्रश्न में जरा-सा फेरबदल होता है, तो उनकी आँखों तले अंधेरा छा जाता है। परिणाम अनुत्तीर्ण या कम अंक प्राप्त होना।
रटना शिक्षा नहीं है, ये तो शिक्षा के नाम पर खानापूर्ति है। जो विद्यार्थी सच में शिक्षा ग्रहण करने का इच्छुक होता है, वह अपनी शिक्षा को गंभीरता से लेता है। अध्यापकों द्वारा पढ़ाए गए पाठ को विद्यालय से आकर घर पर पढ़ता है। यदि एक पाठ को भली-भांति पढ़ा जाए या उसका अध्ययन किया जाए, तो वह सरलता से याद हो जाता है। गणित विषय के प्रश्नों का बार-बार अभ्यास करने से ही वे हल होते हैं। यही शिक्षा ग्रहण करने का मंत्र है। जो अभ्यास के स्थान पर रटता है, वह जीवन में उपाधियाँ (डिग्रियाँ) तो प्राप्त कर लेते हैं। परन्तु शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते। रटने से उत्तीर्ण तो हो सकते हैं। परन्तु एक योग्य विद्यार्थी नहीं बन सकते हैं। अच्छी तरह से प्राप्त की गई शिक्षा जीवन में बहुत काम आती है। परन्तु जिसने रटना सीखा हो, वह कुछ और नहीं सीख सकता है। यह तो वही कहावत हो जाती है- आगे दौड़, पीछे छोड़। इसलिए सभी यही कहते हैं रटना शिक्षा नहीं है।